भगवद गीता अध्याय 7 श्लोक 11: पराक्रम और शक्ति का रहस्य
परिचय: क्या आपको अपने जीवन में आत्मबल और शक्ति की आवश्यकता है? क्या आप जानना चाहते हैं कि सच्चे पराक्रम का स्रोत क्या है? भगवद गीता के अध्याय 7 के श्लोक 11 में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि वे स्वयं पराक्रम और शक्ति के मूल स्रोत हैं। इस लेख में हम इस श्लोक का गहराई से अध्ययन करेंगे और समझेंगे कि इसे अपने जीवन में कैसे अपनाया जाए। श्लोक और उसका उच्चारण: "बलं बलवतां चाहं कामरागविवर्जितम्। धर्माविरुद्धो भूतेषु कामोऽस्मि भरतर्षभ।।" हिंदी अनुवाद: “हे भरतश्रेष्ठ! मैं बलवानों का बल हूँ, जो काम और राग से रहित है। मैं वह इच्छा हूँ जो धर्म के विरुद्ध नहीं है।” श्लोक का गहराई से अर्थ: इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण बताते हैं कि वे ही बल (शक्ति) के मूल स्रोत हैं, लेकिन यह शक्ति संयमित और धर्मसम्मत होनी चाहिए। यह केवल बाहरी बल नहीं, बल्कि मानसिक, आध्यात्मिक और नैतिक बल भी है। 🔹 बल की शुद्धता: सच्चा बल वह होता है जो अहंकार से मुक्त हो और किसी भी प्रकार की आसक्ति (कामना) और राग (स्वार्थ) से रहित हो। 🔹 धर्मानुसार इच्छाएँ: भगवान यह भी बताते हैं कि वे उन इच्छाओं में विद्यमान हैं जो धर्म ...