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Showing posts from November, 2024

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 17 - आत्मज्ञान का प्रकाश | भगवद गीता से प्रेरणा

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  "नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका हमारे चैनल पर, जहाँ हम हर दिन भगवद गीता के श्लोकों का ज्ञान साझा करते हैं। आज हम चर्चा करेंगे अध्याय 5 के श्लोक 17 की। आत्मज्ञान से कैसे हमारे जीवन में प्रकाश फैलता है, यही आज की मुख्य बात होगी।  पिछले वीडियो में हमने श्लोक 15 और 16 पर चर्चा की थी, जहाँ कर्म और ज्ञान के समन्वय की बात की गई। अगर आपने वह वीडियो मिस किया है, तो जाकर ज़रूर देखें। आज के श्लोक 17 में भगवान श्रीकृष्ण ने आत्मज्ञान को समझाने पर जोर दिया है। उन्होंने कहा कि जिनका मन सत्य में स्थिर है, वे ही परमात्मा को जानते हैं। उनके जीवन का हर क्षण ज्ञान से भरा होता है।" "हम लेके आये है आपके  लिये एक खास Offer. अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ। श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं ...

शांति और स्थिरता का मार्ग | भगवद गीता: अध्याय 5, श्लोक 13 और 14 | जीवन के रहस्यों का खुलासा

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 "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || हम लेके आये है आपके  लिये एक खास Offer. अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ। ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" नमस्कार दोस्तों! आपका स्वागत है हमारे विशेष भगवद्गीता श्लोक श्रृंखला में। हर दिन, हम आपके साथ एक श्लोक साझा करते हैं, उसका अर्थ समझाते हैं और आपके जीवन में उसे लागू करने के तरीके बताते हैं। आज हम चर्चा करेंगे अध्याय 5 के श्लोक 15 और 16 की। पिछले वीडियो में हमने ...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 13 से 14 - शांति और स्थिरता का मार्ग

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  "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || हम लेके आये है आपके  लिये एक खास Offer. अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ। ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" "नमस्ते दोस्तों! स्वागत है आपका हमारे चैनल पर। आज हम भगवद गीता के अध्याय 5 के श्लोक 13 और 14 पर चर्चा करेंगे। जानिए कैसे त्याग और कर्मयोग के माध्यम से जीवन में शांति और स्थिरता प्राप्त की जा सकती है। अगर आपने चैनल को सब्सक्राइब नहीं किया है, तो अभी करें और...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 12 - योगयुक्त व्यक्ति की शांति का रहस्य

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  "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || हम लेके आये है आपके  लिये एक खास Offer. अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ। ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आप जानना चाहते हैं कि योगयुक्त व्यक्ति कैसे कर्मफल को त्यागकर जीवन में शांति और स्थिरता प्राप्त करता है? आज हम श्रीकृष्ण के श्लोक 12 से इसका रहस्य जानेंगे। पिछले श्लोकों में हमने सीखा कि योगी अपने शरीर, मन और बुद्धि के माध्यम से निष्काम भाव से कर्म करता है...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 10 से 11 - कर्मों को ईश्वर को समर्पित करने का रहस्य

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 "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || हम लेके आये है आपके  लिये एक खास Offer. अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ। ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या कर्म करते हुए भी बंधन मुक्त रहा जा सकता है? आज के श्लोकों में श्रीकृष्ण से जानें कि कैसे कर्म ईश्वर को समर्पित करके जीवन में शांति और मुक्ति प्राप्त करें। पिछले श्लोकों में हमने सीखा कि ज्ञानी व्यक्ति हर कार्य को प्रकृति का कार्य मानता है और अपने अहंकार से ...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 8 से 9 - ज्ञानी व्यक्ति के कर्म और उनकी निष्कामता

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 "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || हम लेके आये है आपके  लिये एक खास Offer. अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ। ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या आप भी चाहते हैं कि जीवन के कार्यों में उलझे बिना मानसिक शांति और ब्रह्म की प्राप्ति हो? आइए, आज जानें श्रीकृष्ण का यह दिव्य रहस्य। पिछले श्लोकों में हमने सीखा कि योगयुक्त व्यक्ति सभी कर्म करते हुए भी आत्मा की शुद्धि और ब्रह्म की प्राप्ति कर सकता है। "श...

ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 5 श्लोक 6 से 7 - कर्मयोग का मार्ग और आत्मा की शुद्धि का महत्व

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"श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || हम लेके आये है आपके  लिये एक खास Offer. अधिक जानकारी के लिये बने रहे हमारे साथ। ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ""गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥ यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥ वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥" क्या त्याग के बिना आत्मा की शुद्धि संभव है? और क्यों श्रीकृष्ण कहते हैं कि केवल कर्मयोग के माध्यम से ही शांति और मुक्ति मिल सकती है? आज इन सवालों के जवाब जानिए। पिछले श्लोक में हमने सीखा कि कर्मयोग और संन्यास में कोई भेद नहीं है। श्रीकृष्ण ने बताया कि इन दोनों का...