भगवान को सभी क्यों नहीं समझ पाते?
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📜 गीता ज्ञान का अनमोल उपहार
भगवद गीता अध्याय 7 श्लोक 15 के अनुसार, चार प्रकार के लोग भगवान से विमुख रहते हैं:
1️⃣ दुष्कृतिन (पापी): जो अधर्म के कार्यों में लगे रहते हैं
2️⃣ मूढ़ (मूर्ख): जिनकी बुद्धि सांसारिक चीज़ों में उलझी रहती है
3️⃣ नराधम (गिरे हुए मनुष्य): जो जीवन को व्यर्थ गवा देते हैं
4️⃣ मायया अपहृतज्ञाना (माया से ढके हुए): जो सत्य को पहचान नहीं पाते
📌 क्या आप मानते हैं कि कुछ लोग आध्यात्मिकता को पूरी तरह अस्वीकार कर देते हैं? कमेंट में बताएं!
"श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7, श्लोक 15 की व्याख्या
🌿 भूमिका:
हम सभी जीवन में किसी न किसी रूप में भगवान को जानने और समझने का प्रयास करते हैं। कुछ लोग सफल होते हैं, तो कुछ जीवनभर भटकते रहते हैं। लेकिन क्या आपने कभी सोचा है कि हर कोई भगवान को क्यों नहीं पहचान पाता? श्रीमद्भगवद्गीता के सातवें अध्याय के 15वें श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण ने इसका उत्तर दिया है।
📜 श्लोक:
न मां दुष्कृतिनो मूढाः प्रपद्यन्ते नराधमाः।
माययापहृतज्ञाना आसुरं भावमाश्रिताः॥
📝 शब्दार्थ:
दुष्कृतिनः – पापमय कार्यों में लिप्त लोग
मूढाः – अज्ञानी और भ्रमित लोग
नराधमाः – वे जो अपने जीवन का सही उपयोग नहीं कर पाते
मायया अपहृतज्ञाः – जिनकी बुद्धि माया ने ढक दी है
आसुरं भावमाश्रिताः – जिनका स्वभाव आसुरी प्रवृत्ति वाला होता है
🔍 अर्थ एवं व्याख्या:
श्रीकृष्ण इस श्लोक में बताते हैं कि चार प्रकार के लोग भगवान की शरण में नहीं आते:
1️⃣ दुष्कृतिन:
जो धर्म और सत्य के विरुद्ध कर्म करते हैं।
लोभ, क्रोध, अहंकार और अधर्म में लिप्त रहते हैं।
2️⃣ मूढ़:
वे जो जीवन के वास्तविक सत्य को नहीं समझते।
सांसारिक भोगों में उलझे रहते हैं और आत्मज्ञान से दूर रहते हैं।
3️⃣ नराधम:
वे जो मनुष्य जीवन का सर्वोत्तम उपयोग नहीं कर पाते।
ईश्वर द्वारा दी गई बुद्धि और विवेक का सही प्रयोग नहीं करते।
4️⃣ मायया अपहृतज्ञाना:
वे लोग जिनकी बुद्धि माया से ढक गई है।
सांसारिक मोह और अज्ञान उन्हें सत्य से भटकाए रखता है।
🔥 गहरी सीख:
यह श्लोक हमें चेतावनी देता है कि यदि हम भगवान से विमुख रहेंगे, तो हमारे जीवन में अज्ञान, भ्रम और असंतोष बना रहेगा। हमें आध्यात्मिक रूप से आगे बढ़ने के लिए अपने दोषों को पहचानकर सुधार करना होगा।
💡 जीवन में उपयोग:
अपने भीतर के अज्ञान और मोह को पहचानें।
आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करने का प्रयास करें।
अपने कर्मों को सुधारें और भगवान की भक्ति में प्रवृत्त हों।
📖 निष्कर्ष:
जो व्यक्ति सत्य को जानना चाहता है, उसे श्रीकृष्ण की शरण में आना होगा। संसार की माया से परे जाकर भगवान को पहचानने की कोशिश करनी चाहिए।
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