श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8, श्लोक 1-3 का ज्ञान और महत्व

     

(श्लोक 1-2: अर्जुन के सात प्रश्न)

श्लोक 1:

अर्जुन उवाच —
किं तद्ब्रह्म किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम |
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥1॥

श्लोक 2:

अधियज्ञः कथं कोऽत्र देहेऽस्मिन्मधुसूदन |
प्रयाणकाले च कथं ज्ञेयोऽसि नियतात्मभिः ॥2॥

श्लोक का अर्थ:

अर्जुन ने भगवान श्रीकृष्ण से सात महत्वपूर्ण प्रश्न पूछे:

  1. ब्रह्म क्या है?
  2. अध्यात्म क्या है?
  3. कर्म क्या है?
  4. अधिभूत क्या है?
  5. अधिदैव क्या है?
  6. अधियज्ञ कौन हैं और वे शरीर में कैसे स्थित हैं?
  7. प्रयाणकाल (मृत्यु के समय) में भगवान को कैसे जाना जा सकता है?

(श्लोक 3: श्रीकृष्ण का उत्तर)

श्रीभगवानुवाच —

अक्षरं ब्रह्म परमं स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते |
भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः ॥3॥

श्लोक का अर्थ:

भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन के प्रश्नों का उत्तर दिया:

  1. ब्रह्म (परम सत्य):
    • "अक्षरं ब्रह्म परमं" – जो नष्ट नहीं होता, वही परम ब्रह्म है।
  2. अध्यात्म:
    • "स्वभावोऽध्यात्ममुच्यते" – जीवात्मा का स्वभाव अध्यात्म कहलाता है।
  3. कर्म:
    • "भूतभावोद्भवकरो विसर्गः कर्मसंज्ञितः" – जीवों की उत्पत्ति और उनका विकास कराने वाली शक्ति कर्म कहलाती है।

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