अपने को भजनेवाले भक्तों के लक्षण – श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7, श्लोक 28
श्लोक:
येषां त्वन्तगतं पापं जनानां पुण्यकर्मणाम्।
ते द्वन्द्वमोहनिर्मुक्ता भजन्ते मां दृढव्रता:॥
अनुवाद:
"जिन पुरुषों के पाप नष्ट हो गए हैं, जो पुण्य कर्म करने वाले हैं, वे द्वंद्वजनित मोह से मुक्त होकर दृढ़ निश्चय के साथ मेरी भक्ति करते हैं।"
इस श्लोक का अर्थ और महत्व
1. भक्त कौन होते हैं?
भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में बता रहे हैं कि वे लोग जो:
- अपने पापों को समाप्त कर चुके हैं,
- सत्कर्म (पुण्य कर्म) करने वाले हैं,
- द्वंद्व (सुख-दुःख, लाभ-हानि, मान-अपमान) के मोह से मुक्त हो चुके हैं,
- दृढ़ निश्चय के साथ भगवान की भक्ति में लीन रहते हैं,
वे ही सच्चे भक्त हैं।
2. पापों का अंत कैसे होता है?
- सद्गुरु और ज्ञान की प्राप्ति से।
- निष्काम कर्म और सेवा भाव से।
- भगवान के प्रति प्रेम और श्रद्धा से।
3. द्वंद्वमोह से मुक्ति क्यों आवश्यक है?
- द्वंद्व यानी सुख-दुःख, लाभ-हानि, सफलता-असफलता आदि के कारण व्यक्ति का मन भटकता है।
- जब व्यक्ति इन द्वंद्वों से मुक्त हो जाता है, तभी वह भगवान की भक्ति को पूरी तरह अपना सकता है।
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