ईश्वर-अर्जुन संवाद | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7, श्लोक 21 – क्या भगवान सभी की भक्ति स्वीकार करते हैं?

 

श्लोक:

यो यो यां यां तनुं भक्तः श्रद्धयार्चितुमिच्छति |
तस्य तस्याचलां श्रद्धां तामेव विदधाम्यहम् ||

अनुवाद:

"जो भी भक्त श्रद्धा के साथ किसी विशेष देवता की पूजा करना चाहता है, मैं उसकी श्रद्धा को स्थिर कर देता हूँ ताकि वह उसी देवता की आराधना कर सके।"


परिचय

श्रीमद्भगवद्गीता का सातवाँ अध्याय ज्ञान और विज्ञान योग को समझाने वाला है, जिसमें भगवान श्रीकृष्ण भक्तों को ईश्वर की वास्तविकता और भक्ति के मार्ग पर प्रकाश डालते हैं। इस श्लोक में भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट करते हैं कि कोई भी व्यक्ति किसी भी रूप में भक्ति करे, मैं उसकी श्रद्धा को मजबूत कर देता हूँ।

यह श्लोक उन लोगों के लिए विशेष रूप से महत्वपूर्ण है जो विभिन्न देवी-देवताओं की पूजा करते हैं। श्रीकृष्ण यहाँ यह नहीं कहते कि अन्य देवी-देवताओं की पूजा गलत है, बल्कि वे बताते हैं कि भक्त जिस भी रूप में भक्ति करेगा, उसकी श्रद्धा को मैं ही स्थापित करता हूँ।


क्या भगवान सभी की भक्ति स्वीकार करते हैं?

यह एक बहुत ही गहरी और आध्यात्मिक दृष्टिकोण रखने वाला प्रश्न है। इस श्लोक के माध्यम से भगवान श्रीकृष्ण यह बताते हैं कि वे प्रत्येक भक्त की भावनाओं को समझते हैं और जिस भी रूप में कोई भक्त उन्हें पूजता है, वे उसकी भक्ति को स्वीकार करते हैं।

1. श्रद्धा का महत्व

ईश्वर को पाने के लिए श्रद्धा बहुत आवश्यक है। यह श्रद्धा किसी भी रूप में हो सकती है - चाहे कोई भगवान विष्णु की पूजा करे, शिव की भक्ति करे, देवी माँ की उपासना करे या अन्य किसी देवता की आराधना करे। यह श्रद्धा व्यक्ति को आध्यात्मिक उन्नति की ओर ले जाती है।

2. भगवान ही सभी श्रद्धा का आधार हैं

भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि भक्त जिस भी देवता की आराधना करता है, वह शक्ति उसी परमात्मा द्वारा दी जाती है। भक्त की श्रद्धा को स्थिर करने का कार्य भगवान स्वयं करते हैं, क्योंकि सभी ऊर्जा और शक्ति का स्रोत वे ही हैं।

3. विभिन्न रूपों में भक्ति

कुछ लोग भगवान को साकार रूप में पूजते हैं तो कुछ लोग निराकार रूप में। कोई विष्णु का उपासक है, तो कोई शिव का। कोई देवी दुर्गा की पूजा करता है तो कोई सूर्य देवता को प्रणाम करता है। लेकिन अंततः सभी मार्ग परम सत्य (भगवान) की ओर ही जाते हैं।

4. क्या सभी प्रकार की भक्ति समान हैं?

हालाँकि भगवान सभी की श्रद्धा को स्वीकार करते हैं, लेकिन वे गीता के आगे के श्लोकों में बताते हैं कि जो लोग केवल सांसारिक इच्छाओं की पूर्ति के लिए देवताओं की पूजा करते हैं, वे अंततः अस्थायी फल प्राप्त करते हैं। परंतु जो व्यक्ति स्वयं को पूरी तरह ईश्वर को समर्पित करता है, उसे अनंत फल मिलता है।


भगवान की भक्ति करने के सही तरीके

  1. सच्ची श्रद्धा और विश्वास: भगवान को प्रसन्न करने के लिए हृदय से भक्ति करना आवश्यक है।
  2. निस्वार्थ प्रेम: भगवान की पूजा केवल इच्छाओं की पूर्ति के लिए नहीं, बल्कि प्रेम और समर्पण से करनी चाहिए।
  3. सभी में भगवान का दर्शन: केवल मूर्ति पूजा ही नहीं, बल्कि सभी प्राणियों में भगवान को देखना भी सच्ची भक्ति का रूप है।
  4. नित्य ध्यान और स्मरण: भगवान के नाम का जप और उनके गुणों का ध्यान करना आध्यात्मिक उन्नति के लिए आवश्यक है।

निष्कर्ष

भगवान श्रीकृष्ण इस श्लोक में स्पष्ट करते हैं कि वे सभी की भक्ति को स्वीकार करते हैं और भक्त जिस भी रूप में उन्हें पूजता है, वे उसकी श्रद्धा को दृढ़ कर देते हैं। हालाँकि, वे यह भी बताते हैं कि केवल ईश्वर की भक्ति करने से ही व्यक्ति को मोक्ष प्राप्त हो सकता है। यदि हम भगवान के शरणागत होते हैं और निस्वार्थ भाव से उनकी आराधना करते हैं, तो वे हमें अपने दिव्य प्रेम और कृपा से भर देते हैं।

"हरि ॐ तत्सत्!" 🙏

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