श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7, श्लोक 16: चार प्रकार के पुण्यात्मा भक्त

 

श्लोक:

चतुर्विधा भजन्ते मां जनाः सुकृतिनोऽर्जुन ।

आर्तो जिज्ञासुरर्थार्थी ज्ञानी च भरतर्षभ ॥


शब्दार्थ:

भरतर्षभ अर्जुन – हे भरतवंशियों में श्रेष्ठ अर्जुन!

सुकृतिनः – उत्तम कर्म करने वाले

अर्थार्थी – धन-संपत्ति की इच्छा रखने वाले

आर्तः – कष्ट में पड़ा हुआ

जिज्ञासुः – जिज्ञासु, ज्ञान प्राप्त करने की इच्छा रखने वाला

ज्ञानी – भगवान को जानने वाला

चतुर्विधाः – चार प्रकार के

जनाः – भक्तजन

माम् – मुझको

भजन्ते – भजते हैं

अर्थ:

हे भरतवंश में श्रेष्ठ अर्जुन! चार प्रकार के पुण्यात्मा भक्तजन मेरी भक्ति करते हैं – (1) आर्त (2) जिज्ञासु (3) अर्थार्थी और (4) ज्ञानी।


व्याख्या:

भगवान श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में चार प्रकार के भक्तों का वर्णन किया है जो ईश्वर की भक्ति करते हैं। ये सभी सुकृतिन (पुण्यात्मा) होते हैं और उनका झुकाव भगवान की ओर होता है।


1. आर्त भक्त:

जो लोग किसी संकट में होते हैं और अपनी कठिनाइयों से मुक्त होने के लिए भगवान को पुकारते हैं, वे आर्त भक्त कहलाते हैं। जब व्यक्ति को संसार में कोई सहारा नहीं मिलता, तब वह भगवान के शरण में आता है। उदाहरण के लिए, गजेन्द्र और द्रौपदी, जिन्होंने अपनी कठिन परिस्थितियों में भगवान को पुकारा।


2. जिज्ञासु भक्त:

जो व्यक्ति यह जानना चाहते हैं कि भगवान कौन हैं, उनका स्वरूप क्या है और वह कैसे मिल सकते हैं, वे जिज्ञासु भक्त होते हैं। वे शास्त्रों के अध्ययन और संतों के संग से आध्यात्मिक ज्ञान प्राप्त करना चाहते हैं।


3. अर्थार्थी भक्त:

जो लोग धन, सुख-सुविधा, प्रतिष्ठा आदि पाने के लिए भगवान की शरण लेते हैं, वे अर्थार्थी भक्त होते हैं। उनका विश्वास होता है कि केवल भगवान ही उनकी इच्छाओं को पूरा कर सकते हैं। ध्रुवजी का उदाहरण इस श्रेणी में आता है, जिन्होंने भगवान की भक्ति कर राज्य प्राप्त किया।


4. ज्ञानी भक्त:

जो व्यक्ति भगवान को वास्तविक रूप में जानकर, केवल भगवान की भक्ति में ही आनंद पाते हैं, वे ज्ञानी भक्त कहलाते हैं। वे सांसारिक इच्छाओं से मुक्त होकर केवल भगवान को पाने की आकांक्षा रखते हैं।


आध्यात्मिक संदेश:

इस श्लोक से हमें यह सीख मिलती है कि कोई भी भक्त किसी भी कारण से भगवान की शरण में आए, यह एक शुभ संकेत है। धीरे-धीरे भक्त की भक्ति परिपक्व होती है और वह सच्चे ज्ञान की ओर अग्रसर होता है। ज्ञानी भक्त सर्वश्रेष्ठ होते हैं, लेकिन अन्य भक्त भी समय के साथ इस स्थिति तक पहुँच सकते हैं।

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