ईश्वर अर्जुन संवाद: श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 7, श्लोक 14 - माया का रहस्य और उसका प्रभाव


क्या आपने कभी सोचा है कि इस संसार की माया से मुक्त होना इतना कठिन क्यों है? भगवान श्रीकृष्ण ने गीता के इस श्लोक में स्पष्ट रूप से बताया है कि यह माया कितनी शक्तिशाली है और इससे मुक्त होने का उपाय क्या है। इस लेख में हम इस रहस्य को विस्तार से समझेंगे और जानेंगे कि हम इस मायाजाल से कैसे बाहर निकल सकते हैं।

श्रीमद्भगवद्गीता: अध्याय 7, श्लोक 14
संस्कृत श्लोक:
दैवी ह्येषा गुणमयी मम माया दुरत्यया।
मामेव ये प्रपद्यन्ते मायामेतां तरन्ति ते ॥

श्लोक का अर्थ:
भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि यह मेरी त्रिगुणमयी माया अत्यंत दुस्तर (कठिन) है, लेकिन जो लोग मेरी शरण में आते हैं, वे इस माया को पार कर जाते हैं।

माया का रहस्य और उसका प्रभाव
1. त्रिगुणमयी माया क्या है?
भगवान श्रीकृष्ण ने इस श्लोक में माया को 'त्रिगुणमयी' कहा है, जिसका अर्थ है कि यह तीन गुणों से बनी हुई है:

सात्त्विक गुण (शुद्धता, ज्ञान, संतोष)
राजसिक गुण (वासना, क्रोध, लालच)
तामसिक गुण (अज्ञानता, आलस्य, मोह)
मनुष्य इन गुणों के प्रभाव में आकर माया के जाल में उलझ जाता है।

2. माया क्यों 'दुरत्यया' (दुस्तर) है?
माया इतनी शक्तिशाली है कि इसे पार करना आसान नहीं है। लोग संसारिक वस्तुओं, धन, शक्ति, और भोग में इतने लिप्त हो जाते हैं कि उन्हें सत्य और असत्य में भेद करना कठिन हो जाता है। माया के प्रभाव से मनुष्य स्वयं को शरीर मान लेता है और अपने वास्तविक स्वरूप को भूल जाता है।

3. माया से मुक्त होने का उपाय
भगवान श्रीकृष्ण स्पष्ट रूप से कहते हैं कि जो व्यक्ति उनकी शरण में आता है, वही इस माया को पार कर सकता है। इसका अर्थ है कि:
✅ हमें अपने जीवन में ईश्वर की भक्ति और शरणागति को अपनाना चाहिए।
✅ हमें यह समझना चाहिए कि यह संसार अस्थायी है और केवल भगवान ही परम सत्य हैं।
✅ हमें लोभ, मोह, और अहंकार से मुक्त होकर अपने कर्मों को निष्काम भाव से करना चाहिए।

व्यावहारिक जीवन में इस श्लोक का महत्व
1️⃣ सफलता और असफलता: जब हम सफलता प्राप्त करते हैं, तो अहंकार आ जाता है, और असफलता में हम निराश हो जाते हैं। लेकिन अगर हम इसे भगवान की मर्जी मान लें, तो हम मानसिक शांति पा सकते हैं।
2️⃣ धन और संपत्ति: संसारिक वस्तुएं नश्वर हैं। हमें इनका उपयोग करना चाहिए, लेकिन इनसे अत्यधिक जुड़ाव हमें माया के बंधन में डाल सकता है।
3️⃣ भक्ति और शरणागति: जब हम पूर्ण समर्पण के साथ भगवान को अपना मार्गदर्शक मानते हैं, तो हमारी समस्याएं हल हो जाती हैं और माया का प्रभाव कम हो जाता है।

निष्कर्ष
भगवान श्रीकृष्ण का यह श्लोक हमें यह समझने में मदद करता है कि माया कितनी शक्तिशाली है और इससे निकलने का एकमात्र मार्ग भगवान की शरण में जाना है। जो व्यक्ति इस रहस्य को समझ लेता है और अपने जीवन में भगवान की भक्ति को अपनाता है, वही इस मायाजाल से मुक्त होकर आत्मज्ञान प्राप्त कर सकता है।

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