ईश्वर अर्जुन संवाद श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 1 श्लोक 20 #BhagavadGita #SpiritualKnowledge




श्री हरि


"""बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय ||


॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥


गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।।


अथ ध्यानम्


शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी कान्तं कमल नयनं योगिभि: ध्यान गम्यम वन्दे विष्णुं भव भयहरं सर्व लोकैक नाथम् ॥


यं ब्रह्मा वरुणेन्द्र रुद्रमरुतः स्तुन्वन्ति दिव्यैः स्तवै- र्वेदैः साङ्ग पद क्रमोपनिषदै: गायन्ति यं सामगाः । ध्यान अवस्थित तद्गतेन मनसा पश्यन्ति यं योगिनो- यस्यान्तं न विदुः सुर असुरगणा देवाय तस्मै नमः ॥


वसुदेव सुतं देवं कंस चाणूर मर्दनम् । देवकी परमानन्दं कृष्णं वन्दे जगद्गुरुम् ॥"""


भगवतगीता अध्याय 1 श्लोक 20


"""२०-२७ अर्जुनके द्वारा सेना-निरीक्षण 


(श्लोक-२०)


अथ व्यवस्थितान्दृष्ट्ा धार्तराष्ट्रान् कपिध्वजः । प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते धनुरुद्यम्य पाण्डवः ॥


महीपते = हे महीपते धृतराष्ट्र, अथ अब, शस्त्रसम्पाते = शस्त्र चलनेकी, प्रवृत्ते = तैयारी हो ही रही थी कि, तदा उस समय, धार्तराष्ट्रान् = अन्यायपूर्वक राज्यको धारण करनेवाले राजाओं और उनके साथियोंको, व्यवस्थितान् = व्यवस्थितरूपसे सामने खड़े हुए, दृष्ट्वा = देखकर, कपिध्वजः = कपिध्वज, पाण्डवः = पाण्डुपुत्र अर्जुनने, धनुः (अपना) गाण्डीव धनुष, उद्यम्य = उठा लिया (और) 

व्याख्या' अथ - इस पदका तात्पर्य है कि अब संजय भगवान् श्रीकृष्ण और अर्जुनके संवादरूप 'भगवद्गीता' का आरम्भ करते हैं। अठारहवें अध्यायके चौहत्तरवें श्लोकमें आये 'इति' पदसे यह संवाद समाप्त होता है। ऐसे ही भगवद्गीताके उपदेशका आरम्भ उसके दूसरे अध्यायके ग्यारहवें श्लोकसे होता है और अठारहवें अध्यायके छाछठवें श्लोकमें यह उपदेश समाप्त होता है।


'प्रवृत्ते शस्त्रसम्पाते'- यद्यपि पितामह भीष्मने युद्धारम्भकी घोषणाके लिये शंख नहीं बजाया था, प्रत्युत केवल दुर्योधनको प्रसन्न करनेके लिये ही शंख बजाया था, तथापि कौरव और पाण्डव-सेनाने उसको युद्धारम्भकी घोषणा ही मान लिया और अपने-अपने अस्त्र-शस्त्र हाथमें उठाकर तैयार हो गये। इस तरह सेनाको शस्त्र उठाये देखकर वीरतामें भरकर अर्जुनने भी अपना गाण्डीव धनुष हाथमें उठा लिया।


'व्यवस्थितान् धार्तराष्ट्रान् दृष्ट्ा' - इन पदोंसे संजयका तात्पर्य है कि जब आपके पुत्र दुर्योधनने पाण्डवोंकी सेनाको देखा, तब वह भागा-भागा द्रोणाचार्यके पास गया। परन्तु जब अर्जुनने कौरवोंकी सेनाको देखा, तब उनका हाथ सीधे गाण्डीव धनुषपर ही गया - ' धनुरुद्यम्य।' इससे मालूम होता है कि दुर्योधनके भीतर भय है और अर्जुनके भीतर निर्भयता है, उत्साह है, वीरता है।


'कपिध्वजः' - अर्जुनके लिये 'कपिध्वज' विशेषण देकर संजय धृतराष्ट्रको अर्जुनके रथकी ध्वजापर विराजमान हनुमान् जी का स्मरण कराते हैं। जब पाण्डव वनमें रहते थे, तब एक दिन अकस्मात् वायुने एक दिव्य सहस्रदल कमल लाकर द्रौपदीके सामने डाल दिया। उसे देखकर द्रौपदी बहुत प्रसन्न हो गयी और उसने भीमसेनसे कहा कि 'वीरवर! आप ऐसे बहुत-से कमल ला दीजिये।' द्रौपदीकी इच्छा पूर्ण करनेके लिये भीमसेन वहाँसे चल पड़े। जब वे कदलीवनमें पहुँचे, तब वहाँ उनकी हनुमान् जी से भेंट हो गयी। उन दोनोंकी आपसमें कई बातें हुईं। अन्तमें हनुमान् जी ने भीमसेनसे वरदान माँगनेके लिये आग्रह किया तो भीमसेनने कहा कि 'मेरेपर आपकी कृपा बनी रहे'। इसपर हनुमान् जी ने कहा कि 'हे वायुपुत्र ! जिस समय तुम बाण और शक्तिके आघातसे व्याकुल शत्रुओंकी सेनामें घुसकर सिंहनाद करोगे, उस समय मैं अपनी गर्जनासे उस सिंहनादको और बढ़ा दूँगा। इसके सिवाय अर्जुनके रथकी ध्वजापर बैठकर मैं ऐसी भयंकर गर्जना किया करूँगा, जो शत्रुओंके प्राणोंको हरनेवाली होगी,


जिससे तुमलोग अपने शत्रुओंको सुगमतासे मार सकोगे। *


* तदाहं बृंहयिष्यामि स्वरवेण रवं तव । विजयस्य ध्वजस्थश्च नादान् मोक्ष्यामि दारुणान् ॥ शत्रूणां ये प्राणहराः सुखं येन हनिष्यथ ।


(महाभारत, वन० १५१।१७-१८)


इस प्रकार जिनके रथकी ध्वजापर हनुमान् जी विराजमान हैं, उनकी विजय निश्चित है।


'पाण्डवः' - धृतराष्ट्रने अपने प्रश्नमें 'पाण्डवाः' पदका प्रयोग किया था। अतः धृतराष्ट्रको बार-बार पाण्डवोंकी याद दिलानेके लिये संजय (१। १४ में और यहाँ) 'पाण्डवः' शब्दका प्रयोग करते हैं।""

ऐसी ही और वीडियो के लिए हमसे जुड़े रहिए, और आपका आशीर्वाद और सहयोग बनाए रखे। अगर हमारा प्रयास आपको पसंद आया तो चैनल को सब्सक्राइब करें और अपने स्नेहीजनों को भी शेयर करें।


बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय || जय श्री कृष्ण || 

Comments

Popular posts from this blog

📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8, श्लोक 22 "परम सत्य की प्राप्ति का मार्ग"

📖 श्रीमद्भगवद्गीता – अध्याय 8, श्लोक 27 "ज्ञान और मोक्ष के मार्ग को समझना"

ईश्वर-अर्जुन संवाद: अंतिम क्षण में क्या स्मरण करें? (श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 8, श्लोक 6)