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Showing posts from April, 2025

❗पाप से पुण्य तक की यात्रा | Chapter 9 Shlok 31 | श्रीकृष्ण का बदलाव का सूत्र | Jagat ka Saar

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ❗ पाप से पुण्य तक की यात्रा | Chapter 9 Shlok 31 | श्रीकृष्ण का बदलाव का सूत्र | Jagat ka Saar नमस्कार मेरे आत्मीय साथियों! स्वागत है आपका "Geeta ka Saar – by Jagat ka Saar" के आज के दिव्य ज्ञान सत्र में। हर दिन हम गीता के एक श्लोक से जीवन को देखने का नया दृष्टिकोण सीखते हैं। एक विनम्र अनुरोध: कृपया कमेंट करने से पहले पूरा सुनें, अधूरा सुनकर गीता जी की अवहेलना न करें। अगर आपके पास अभी समय नहीं है, तो आप प्रारंभ में ही skip कर सकते हैं — ना हम बुरा मानेंगे और ना ही प्रभु। ✅ Recap – कल का श्लोक (Chapter 9, Shlok 30) कल हमने जाना कि — अगर कोई अत्यंत पापी भी भगवान की सच्ची और एकनिष्ठ भक्ति करता है, तो वह साधु कहलाने योग्य है। भगवान हमारे अतीत को नहीं, हमारे वर्तमान संकल्प और नीयत को देखते हैं। ✅ Today’s Introduction – Chapter 9, Shlok 31 "क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति। कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥" भावार्थ: "वह (भक्त) शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और चिरकाल की शांति को प्राप्त करता है। हे अर्जुन! तू यह ...

❗पापी भी साधु कहलाए? | Chapter 9 Shlok 30 | भगवद गीता का सबसे चौंकाने वाला श्लोक | Jagat ka Saar

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ❗ पापी भी साधु कहलाए? | Chapter 9 Shlok 30 | भगवद गीता का सबसे चौंकाने वाला श्लोक | Jagat ka Saar नमस्कार दोस्तों! स्वागत है आपका "Geeta ka Saar – by Jagat ka Saar" के इस पावन श्रृंखला में। यहां हम हर दिन एक श्लोक को जीवन से जोड़कर समझते हैं। कमेंट करने से पहले कृपया पूरा सुनें। अधूरा सुनकर गीता जी की अवहेलना ना करें। यदि आपके पास समय नहीं है तो प्रारंभ में ही स्किप कर सकते हैं। आज का श्लोक है – अध्याय 9, श्लोक 30 जिसमें भगवान श्रीकृष्ण कहते हैं कि — "पापी भी अगर मेरी सच्ची भक्ति करे, तो वह साधु कहलाने योग्य है!" लेकिन… क्या सच में ऐसा हो सकता है? आइए, इसे समझते हैं आज के ज्ञानयात्रा में। कल हमने देखा — भगवान कहते हैं कि मैं हर प्राणी में समभाव रखता हूँ, लेकिन जो मेरी भक्ति करता है, मैं उसमें रम जाता हूँ। इसका मतलब ये नहीं कि भगवान पक्षपाती हैं, बल्कि वो प्रेमपूर्ण भक्ति को महत्व देते हैं। अब बात करते हैं आज के श्लोक की — "अपि चेत् सुदुराचारो भजते मामनन्यभाक्। साधुरेव स मन्तव्यः सम्यग्व्यवसितो हि सः॥" भावार्थ: यदि कोई अत्यंत ...

✨ एक जैसा दृष्टिकोण, सब में ईश्वर का रूप | Chapter 9 Shlok 29 | Jagat ka Saar ✨

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ 📖 आज का विषय: ✨ एक जैसा दृष्टिकोण, सब में ईश्वर का रूप | Chapter 9 Shlok 29 | Jagat ka Saar ✨ 🪔 गीता का दिव्य ज्ञान गीता का ज्ञान एक ऐसा दिव्य प्रकाश है जो हमारे जीवन के हर कोने को आलोकित करता है। 👉🏻 हर श्लोक हमें आत्मा, कर्त्तव्य और भक्ति की गहराई सिखाता है। आज का श्लोक भी हमारी सोच बदल सकता है… 🔮 कल हमने देखा था कि भगवान कैसे भक्तों की रक्षा करते हैं और उन्हें ज्ञान की ओर ले जाते हैं। आज जानेंगे — भगवान कैसे सबके साथ समान व्यवहार करते हैं… लेकिन भक्ति करने वालों से विशेष प्रेम क्यों करते हैं? 🎙️ कभी सोचा है कि भगवान सबके साथ समान क्यों हैं — फिर भी भक्तों को विशेष प्रेम क्यों मिलता है? अध्याय 9, श्लोक 29 इसका रहस्य खोलता है! 👉🏻 "मैं सबके प्रति समान हूँ..." — श्रीकृष्ण 🌺 गीता का महिमा "श्री हरि बोलो ग्रंथराज श्रीमद्भगवद्गीता जी की जय गीता सुगीता कर्तव्या किमन्यैः शास्त्र विस्तरैः । या स्वयं पद्म नाभस्य मुख पद्माद्विनिः सृता ।। अथ ध्यानम् शान्ताकारं भुजग शयनं पद्म नाभं सुरेशं विश्व आधारं गगन सदृशं मेघवर्णं शुभाङ्गम् । लक्ष्मी ...

कर्मबन्धन से मुक्ति का रहस्य | श्रीमद्भगवद्गीता अध्याय 9 श्लोक 28 | Geeta ka Saar | Moksha via Karma

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  ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 28 - कैसे हर कर्म का फल पवित्र हो सकता है? गीता का ज्ञान एक ऐसा दिव्य प्रकाश है जो हमारे जीवन के हर पहलू को आलोकित करता है। कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह ज्ञान दिया था, और उस दिव्य संवाद को सुनने का सौभाग्य केवल कुछ ही आत्माओं को प्राप्त हुआ — 👉 अर्जुन, 👉 ध्वजा पर विराजमान हनुमान जी, 👉 दिव्य दृष्टि से युक्त संजय, और 👉 हस्तिनापुर में बैठे धृतराष्ट्र। यह आश्चर्य की बात है कि एक ही ज्ञान को सुनकर भी सबकी समझ अलग-अलग थी — ✅ अर्जुन ने इसे अपने कर्तव्य को समझने और निभाने की प्रेरणा के रूप में लिया, ❌ जबकि धृतराष्ट्र मोहवश उस दिव्य ज्ञान को समझ ही नहीं पाए। आज अगर हम इस श्लोक को सुन पा रहे हैं, तो यह एक दुर्लभ सौभाग्य है। तो चलिए मिलकर आज के श्लोक का गूढ़ अर्थ समझते हैं — और जानते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण हमें पूजा, यज्ञ और उसके फल के बारे में क्या गहराई से बताते हैं। 🎁 और हाँ, वीडियो के अंत में मिलेगा – एक जीवन की समस्या का समाधान और एक रोचक सवाल – जिसका जवाब आप देंगे, लेकिन उत्त...

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 27 - हर कर्म को अर्पण करें भगवान को

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 ॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 27 - हर कर्म को अर्पण करें भगवान को गीता का ज्ञान एक ऐसा दिव्य प्रकाश है जो हमारे जीवन के हर पहलू को आलोकित करता है। कुरुक्षेत्र के युद्धभूमि में भगवान श्रीकृष्ण ने अर्जुन को यह ज्ञान दिया था — लेकिन सिर्फ अर्जुन ही नहीं, हनुमान जी, संजय और धृतराष्ट्र ने भी इसे सुना। फर्क था समझ का। आज हम सौभाग्यशाली हैं कि हमें इस दिव्य संवाद को समझने का अवसर मिल रहा है। और अंत में मिलेगा एक जीवन से जुड़ी समस्या का समाधान भी – तो अंत तक जुड़े रहें!" पिछले श्लोक में भगवान ने कहा था कि यदि कोई मुझे प्रेम से पत्र, पुष्प, फल, या जल भी अर्पित करता है , तो मैं उसे श्रद्धा सहित स्वीकार करता हूँ। इससे यह स्पष्ट हुआ कि श्रद्धा और भावना ही सबसे बड़ा साधन है। 📖 आज का श्लोक परिचय (अध्याय 9, श्लोक 27): 👉 श्लोक: "यत्करोषि यदश्नासि यज्जुहोषि ददासि यत्। यत्तपस्यसि कौन्तेय तत्कुरुष्व मदर्पणम्॥" 👑 भावार्थ: हे अर्जुन! तुम जो कुछ भी करते हो, खाते हो, यज्ञ करते हो, दान देते हो या तपस्या करते हो — वह सब कुछ मुझे अर्पण करके करो। 🔍 त...

गीता का सार (Geeta Ka Saar) अध्याय 9 श्लोक 26 - भगवान को क्या अर्पण करें?

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