❗पाप से पुण्य तक की यात्रा | Chapter 9 Shlok 31 | श्रीकृष्ण का बदलाव का सूत्र | Jagat ka Saar
॥ ॐ श्रीपरमात्मने नमः ॥ ❗ पाप से पुण्य तक की यात्रा | Chapter 9 Shlok 31 | श्रीकृष्ण का बदलाव का सूत्र | Jagat ka Saar नमस्कार मेरे आत्मीय साथियों! स्वागत है आपका "Geeta ka Saar – by Jagat ka Saar" के आज के दिव्य ज्ञान सत्र में। हर दिन हम गीता के एक श्लोक से जीवन को देखने का नया दृष्टिकोण सीखते हैं। एक विनम्र अनुरोध: कृपया कमेंट करने से पहले पूरा सुनें, अधूरा सुनकर गीता जी की अवहेलना न करें। अगर आपके पास अभी समय नहीं है, तो आप प्रारंभ में ही skip कर सकते हैं — ना हम बुरा मानेंगे और ना ही प्रभु। ✅ Recap – कल का श्लोक (Chapter 9, Shlok 30) कल हमने जाना कि — अगर कोई अत्यंत पापी भी भगवान की सच्ची और एकनिष्ठ भक्ति करता है, तो वह साधु कहलाने योग्य है। भगवान हमारे अतीत को नहीं, हमारे वर्तमान संकल्प और नीयत को देखते हैं। ✅ Today’s Introduction – Chapter 9, Shlok 31 "क्षिप्रं भवति धर्मात्मा शश्वच्छान्तिं निगच्छति। कौन्तेय प्रतिजानीहि न मे भक्तः प्रणश्यति॥" भावार्थ: "वह (भक्त) शीघ्र ही धर्मात्मा बन जाता है और चिरकाल की शांति को प्राप्त करता है। हे अर्जुन! तू यह ...